बुधवार, 9 मार्च 2022

5.श्रृष्टि क्रम वर्णन

 विदुर प्रश्न

1.सृष्टि रचना के पूर्व समस्त आत्माओं की आत्मा एक पूर्ण परमात्मा ही थे_ न दृष्टा थाा, ना दृश्य !सृष्टि काल में अनेक वृत्तियों के भेद से जो अनेकता दिखाई पड़ती है वह भी वही थे, क्योंकि उनकी इच्छा अकेले रहने की थी।23

वे ही दृष्टा होकर देखने लगे,परंतु उन्हें दृश्य दिखाई नहीं पड़ा; क्योंकि उस समय वे ही अद्वितीय रूप से प्रकाशित हो रहे थे। ऐसी अवस्था में वे अपने को असत के समान समझने लगे। वस्तुतः वे असत नहीं थे,क्योंकि उनकी शक्तियां ही सोई थी। उनके ज्ञान का लोप नहीं हुआ था।

2.यह दृष्टा और दृश्य का अनुसंधान करने वाली शक्ति ही कार्य कारण रूपा माया है ।इस भावाभाव रुप अनिर्वचनीय माया के द्वारा ही भगवान ने इस विश्व का निर्माण किया है।

3.कालशक्ति से जब यह त्रिगुणमयी माया क्षोभ को प्राप्त हुई, तब उन इंद्रियातीत चिन्मय परमात्मा ने अपने अंश पुरुष रूप से उसमें चिदाभास रूप बीज स्थापित किया।

तब काल की प्रेरणा से उस अव्यक्त माया से महतत्व प्रकट हुआ वह मिथ्या अज्ञान का नाशक होने के कारण विज्ञान स्वरूप और अपने में सूक्ष्म रुप से स्थित प्रपंच की अभिव्यक्ति करने वाला था।27

रोहिणी

रोहिणी 


तीसरे स्कंध की 2nd अध्याय से अध्याय 15 तक=14अध्याय

विदुर उद्धव से जयविजय तक 

ŚB 10.87.17

द‍ृतय इव श्वसन्त्यसुभृतो यदि तेऽनुविधा

महदहमादयोऽण्डमसृजन् यदनुग्रहत: ।

पुरुषविधोऽन्वयोऽत्र चरमोऽन्नमयादिषु य:

सदसत: परं त्वमथ यदेष्ववशेषमृतम् ॥ १७ ॥

भगवन्! प्राणधारियोंके जीवनकी सफलता इसीमें है कि वे आपका भजन-सेवन करें, आपकी आज्ञाका पालन करें; यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनका जीवन व्यर्थ है और उनके शरीरमें श्वासका चलना ठीक वैसा ही है, जैसा लुहारकी धौंकनीमें हवाका आना-जाना। महत्तत्त्व, अहंकार आदिने आपके अनुग्रहसे—आपके उनमें प्रवेश करनेपर ही इस ब्रह्माण्डकी सृष्टि की है। अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय—इन पाँचों कोशोंमें पुरुष-रूपसे रहनेवाले, उनमें ‘मैं-मैं’ की स्फूर्ति करनेवाले भी आप ही हैं! आपके ही अस्तित्वसे उन कोशोंके अस्तित्वका अनुभव होता है और उनके न रहनेपर भी अन्तिम अवधिरूपसे आप विराजमान रहते हैं। इस प्रकार सबमें अन्वित और सबकी अवधि होनेपर भी आप असंग ही हैं। क्योंकि वास्तवमें जो कुछ वृत्तियोंके द्वारा अस्ति अथवा नास्तिके रूपमें अनुभव होता है, उन समस्त कार्य-कारणोंसे आप परे हैं। ‘नेति-नेति’ के द्वारा इन सबका निषेध हो जानेपर भी आप ही शेष रहते हैं, क्योंकि आप उस निषेधके भी साक्षी हैं और वास्तवमें आप ही एकमात्र सत्य हैं(इसलिये आपके भजनके बिना जीवका जीवन व्यर्थ ही है, क्योंकि वह इस महान् सत्यसे वंचित है)* ⁠।⁠।⁠१७⁠।⁠।

Only if they become Your faithful followers are those who breathe actually alive, otherwise their breathing is like that of a bellows. It is by Your mercy alone that the elements, beginning with the mahat-tattva and false ego, created the egg of this universe. Among the manifestations known as anna-maya and so forth, You are the ultimate one, entering within the material coverings along with the living entity and assuming the same forms as those he takes. Distinct from the gross and subtle material manifestations, You are the reality underlying them all.





13.वराह

 वराह अवतार