1.सृष्टि रचना के पूर्व समस्त आत्माओं की आत्मा एक पूर्ण परमात्मा ही थे_ न दृष्टा थाा, ना दृश्य !सृष्टि काल में अनेक वृत्तियों के भेद से जो अनेकता दिखाई पड़ती है वह भी वही थे, क्योंकि उनकी इच्छा अकेले रहने की थी।23
वे ही दृष्टा होकर देखने लगे,परंतु उन्हें दृश्य दिखाई नहीं पड़ा; क्योंकि उस समय वे ही अद्वितीय रूप से प्रकाशित हो रहे थे। ऐसी अवस्था में वे अपने को असत के समान समझने लगे। वस्तुतः वे असत नहीं थे,क्योंकि उनकी शक्तियां ही सोई थी। उनके ज्ञान का लोप नहीं हुआ था।
2.यह दृष्टा और दृश्य का अनुसंधान करने वाली शक्ति ही कार्य कारण रूपा माया है ।इस भावाभाव रुप अनिर्वचनीय माया के द्वारा ही भगवान ने इस विश्व का निर्माण किया है।
3.कालशक्ति से जब यह त्रिगुणमयी माया क्षोभ को प्राप्त हुई, तब उन इंद्रियातीत चिन्मय परमात्मा ने अपने अंश पुरुष रूप से उसमें चिदाभास रूप बीज स्थापित किया।
तब काल की प्रेरणा से उस अव्यक्त माया से महतत्व प्रकट हुआ वह मिथ्या अज्ञान का नाशक होने के कारण विज्ञान स्वरूप और अपने में सूक्ष्म रुप से स्थित प्रपंच की अभिव्यक्ति करने वाला था।27