रविवार, 26 जून 2022

7.प्रश्न विदुर जी के प्रश्न

 श्रीमैत्रेयजीने कहा—जो आत्मा सबका स्वामी और सर्वथा मुक्तस्वरूप है, वही दीनता और बन्धनको प्राप्त हो—यह बात युक्तिविरुद्ध अवश्य है; किन्तु वस्तुतः यही तो भगवान्‌की माया है ⁠।⁠।⁠९⁠।⁠। जिस प्रकार स्वप्न देखनेवाले पुरुषको अपना सिर कटना आदि व्यापार न होनेपर भी अज्ञानके कारण सत्यवत् भासते हैं, उसी प्रकार इस जीवको बन्धनादि न होते हुए भी अज्ञानवश भास रहे हैं ⁠।⁠।⁠१०⁠।⁠।यदि यह कहा जाय कि फिर ईश्वरमें इनकी प्रतीति क्यों नहीं होती, तो इसका उत्तर यह है कि जिस प्रकार जलमें होनेवाली कम्प आदि क्रिया जलमें दीखनेवाले चन्द्रमाके प्रतिबिम्बमें न होनेपर भी भासती है, आकाशस्थ चन्द्रमामें नहीं, उसी प्रकार देहाभिमानी जीवमें ही देहके मिथ्या धर्मोंकी प्रतीति होती है, परमात्मामें नहीं ⁠।⁠।⁠११⁠।⁠। निष्कामभावसे धर्मोंका आचरण करनेपर भगवत्कृपासे प्राप्त हुए भक्तियोगके द्वारा यह प्रतीति धीरे-धीरे निवृत्त हो जाती है ⁠।⁠।⁠१२⁠।⁠। जिस समय समस्त इन्द्रियाँ विषयोंसे हटकर साक्षी परमात्मा श्रीहरिमें निश्चलभावसे स्थित हो जाती हैं, उस समय गाढ़ निद्रामें सोये हुए मनुष्यके समान जीवके राग-द्वेषादि सारे क्लेश सर्वथा नष्ट हो जाते हैं ⁠।⁠।⁠१३⁠।⁠। श्रीकृष्णके गुणोंका वर्णन एवं श्रवण अशेष दुःखराशिको शान्त कर देता है; फिर यदि हमारे हृदयमें उनके चरणकमलकी रजके सेवनका प्रेम जग पड़े, तब तो कहना ही क्या है? ⁠।⁠।⁠१४⁠।⁠।

6. विराट शरीर उत्पत्ति

4विदुर जी का मैत्रेय जी का पास जाना

 स्वामिन्! अपने स्वरूपका गूढ़ रहस्य प्रकट करनेवाला जो श्रेष्ठ एवं समग्र ज्ञान आपने ब्रह्माजीको बतलाया था, वह यदि मेरे समझनेयोग्य हो तो मुझे भी सुनाइये, जिससे मैं भी इस संसार-दुःखको सुगमतासे पार कर जाऊँ’ ⁠।⁠।⁠१८⁠।⁠।

विदुरजीने कहा—उद्धवजी! योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्णने अपने स्वरूपके गूढ़ रहस्यको प्रकट करनेवाला जो परमज्ञान आपसे कहा था, वह आप हमें भी सुनाइये; क्योंकि भगवान्‌के सेवक तो अपने सेवकोंका का कार्य सिद्ध करने के लिऐ ही विचरा करते हैं।

उद्धवजीने कहा—उस तत्त्वज्ञानके लिये आपको मुनिवर मैत्रेयजीकी सेवा करनी चाहिये⁠। इस मर्त्यलोकको छोड़ते समय मेरे सामने स्वयं भगवान्‌ने ही आपको उपदेश करनेके लिये उन्हें आज्ञा दी थी ⁠।⁠।⁠२६⁠।⁠।

3. अन्य लीलाओं का वर्णन

14. दिति गर्भ

12.श्रृष्टि विस्तार

10 प्रकार की श्रृष्टि

शनिवार, 25 जून 2022

9ब्रह्म स्तुति

  1.  भगवन्! आपके सिवा और कोई वस्तु नहीं है⁠।
  2. चित् शक्तिके प्रकाशित रहनेके कारण अज्ञान आपसे सदा ही दूर रहता है⁠। आपका यह रूप, जिसके नाभिकमलसे मैं प्रकट हुआ हूँ, सैकड़ों अवतारोंका मूल कारण है⁠।
  3. परमात्मन्! आपका जो आनन्दमात्र, भेदरहित, अखण्ड तेजोमय स्वरूप है, उसे मैं इससे भिन्न नहीं समझता⁠।
  4. विश्वकल्याणमय! मैं आपका उपासक हूँ, आपने मेरे हितके लिये ही मुझे ध्यानमें अपना यह रूप दिखलाया है⁠।
  5. भक्तजनोंके हृदय-कमलसे आप कभी दूर नहीं होते;
  6. अभय प्रद चरणारविंदों का आश्रय 
  7. अमंगलोंको नष्ट करनेवाले
  8. कष्ट उठाते देखकर मेरा मन बड़ा खिन्न होता है
  9. मायाके प्रभावसे आपसे अपनेको भिन्न देखता है,तबतक उसके लिये इस संसारचक्रकी निवृत्ति नहीं होती⁠।
  10. आपके कथाप्रसंगसे विमुख रहते हैं तो उन्हें संसारमें फँसना पड़ता है⁠।
  11. आपका मार्ग केवल गुण श्रवण से ही जाना जाता है।
  12. आप एक हैं तथा संपूर्ण प्राणियों के अंतःकरणों में स्थित व उनके परम हितकारी अंतरात्मा है।सर्व भूत दया
  13. आपकी प्रसन्नता प्राप्त करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा कर्म फल है।
  14. स्वरूप के प्रकाश 
  15. आप नित्य अजन्मा है मैं आपकी शरण लेता हूं।
  16. इस विष वृक्ष के रूप में आप ही विराजमान हैं
  17. बलवान कल भी आपका ही रूप है
  18. आप ही अधिक ग्रुप से मेरी इस तपस्या के साक्षी हैं
  19. आप पूर्ण काम है
  20. आप अविद्या अस्मिता राग द्वेष और अभिनिवेश पांचों में से किसी के भी अधीन नहीं है




8 ब्रह्मा जी की उत्पत्ति

सोमवार, 30 मई 2022

15.जय विजय शाप

 https://youtube.com/clip/UgkxMzgcKE-_b56-i7Iblnh_j0l1vH2DyEPp 

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 शाप दिया

अनुमोदन


1.बाल लीलाओं का वर्णन

बाल लीला वर्णन 

 उद्धव जी द्वारा भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन

ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे पृथ्वीका भार उतारकर उसे सुखी करनेके लिये कंसके कारागारमें वसुदेव-देवकीके यहाँ भगवान्‌ने अवतार लिया था ⁠।⁠।⁠२५⁠।⁠। उस समय कंसके डरसे पिता वसुदेवजीने उन्हें नन्दबाबाके व्रजमें पहुँचा दिया था⁠। वहाँ वे बलरामजीके साथ ग्यारह वर्षतक इस प्रकार छिपकर रहे कि उनका प्रभाव व्रजके बाहर किसीपर प्रकट नहीं हुआ ⁠।⁠।⁠२६⁠।⁠। यमुनाके उपवनमें, जिसके हरे-भरे वृक्षोंपर कलरव करते हुए पक्षियोंके झुंड-के-झुंड रहते हैं, भगवान् श्रीकृष्णने बछड़ोंको चराते हुए ग्वालबालोंकी मण्डलीके साथ विहार किया था ⁠।⁠।⁠२७⁠।⁠। वे व्रजवासियोंकी दृष्टि आकृष्ट करनेके लिये अनेकों बाल-लीला उन्हें दिखाते थे⁠। कभी रोने-से लगते, कभी हँसते और कभी सिंहशावकके समान मुग्ध दृष्टिसे देखते ⁠।⁠।⁠२८⁠।⁠। फिर कुछ बड़े होनेपर वे सफेद बैल और रंग-बिरंगी शोभाकी मूर्ति गौओंको चराते हुए अपने साथी गोपोंको बाँसुरी बजा-बजाकर रिझाने लगे ⁠।⁠।⁠२९⁠।⁠। इसी समय जब कंसने उन्हें मारनेके लिये बहुत-से मायावी और मनमाना रूप धारण करनेवाले राक्षस भेजे, तब उनको खेल-ही-खेलमें भगवान्‌ने मार डाला—जैसे बालक खिलौनोंको तोड़-फोड़ डालता है ⁠।⁠।⁠३०⁠।⁠। कालियनागका दमन करके विष मिला हुआजल पीनेसे मरे हुए ग्वालबालों और गौओंको जीवितकर उन्हें कालियदहका निर्दोष जल पीनेकी सुविधा कर दी ⁠।⁠।⁠३१⁠।⁠। भगवान् श्रीकृष्णने बढ़े हुए धनका सद्व्यय करानेकी इच्छासे श्रेष्ठ ब्राह्मणोंके द्वारा नन्दबाबासे गोवर्धनपूजारूप गोयज्ञ करवाया ⁠।⁠।⁠३२⁠।⁠। भद्र! इससे अपना मानजब इन्द्रभंग होनेके कारण ने क्रोधित होकर व्रजका विनाश करनेके लिये मूसलधार जल बरसाना आरम्भ किया, तब भगवान्‌ने करुणावश खेल-ही-खेलमें छत्तेके समान गोवर्धन पर्वतको उठा लिया और अत्यन्त घबराये हुए व्रजवासियोंकी तथा उनके पशुओंकी रक्षा की ⁠।⁠।⁠३३⁠।⁠। सन्ध्याके समय जब सारे वृन्दावनमें शरत्‌के चन्द्रमाकी चाँदनी छिटक जाती, तब श्रीकृष्ण उसका सम्मान करते हुए मधुर गान करते और गोपियोंके मण्डलकी शोभा बढ़ाते हुए उनके साथ रासविहार करते ⁠।⁠।⁠३४⁠।⁠।



3.भगवान के अन्य लीला चरित्रों का वर्णन 


4.उद्धव जी से विदा होकर विद्युत जी का मैत्री ऋषि के पास जाना 


5.विदुर जी का प्रश्न और मैत्री जी का सही क्रम वर्णन 


6.विराट शरीर की उत्पत्ति 


7.विदुर जी के प्रश्न 


8.ब्रह्मा जी की उत्पत्ति 


9.ब्रह्मा जी द्वारा भगवान की स्तुति 


10.10 प्रकार की सृष्टि का वर्णन 


11.मनवंतर आदि काल विभाग का वर्णन 


12.सृष्टि का विस्तार 


13.वाराह अवतार की कथा 


14.दितिका गर्भधारण 


15.जय विजय को सनका

The fish took the moon to be one of them or maybe something illuminating, but nothing more. The unfortunate persons who do not recognize Lord Kṛṣṇa are like such fish. They take Him to be one of them, although a little extraordinary in opulence, strength, etc.

The Bhagavad-gītā (9.11) confirms such foolish persons to be most unfortunate: avajānanti māṁ mūḍhā mānuṣīṁ tanum āśritam.









Index

 रोहिणी 14




रोहिणी नक्षत्र के बीज मंत्र ” ऊँ ऋं ऊँ लृं ”

2.उद्धव जी द्वारा भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन 

3.भगवान के अन्य लीला चरित्रों का वर्णन 

4.उद्धव जी से विदा होकर विदुर जी का मैत्री ऋषि के पास जाना 

5.विदुर जी का प्रश्न और मैत्री जी का श्रृष्टि क्रम वर्णन 

6.विराट शरीर की उत्पत्ति 

7.विदुर जी के प्रश्न 

8.ब्रह्मा जी की उत्पत्ति 

9.ब्रह्मा जी द्वारा भगवान की स्तुति 


10.10 प्रकार की सृष्टि का वर्णन 

11.मनवंतर आदि काल विभाग का वर्णन 

12.सृष्टि का विस्तार 

13.वाराह अवतार की कथा 

14.दितिका गर्भधारण 

15.जय विजय को सनकादिक का शाप।

बुधवार, 9 मार्च 2022

5.श्रृष्टि क्रम वर्णन

 विदुर प्रश्न

1.सृष्टि रचना के पूर्व समस्त आत्माओं की आत्मा एक पूर्ण परमात्मा ही थे_ न दृष्टा थाा, ना दृश्य !सृष्टि काल में अनेक वृत्तियों के भेद से जो अनेकता दिखाई पड़ती है वह भी वही थे, क्योंकि उनकी इच्छा अकेले रहने की थी।23

वे ही दृष्टा होकर देखने लगे,परंतु उन्हें दृश्य दिखाई नहीं पड़ा; क्योंकि उस समय वे ही अद्वितीय रूप से प्रकाशित हो रहे थे। ऐसी अवस्था में वे अपने को असत के समान समझने लगे। वस्तुतः वे असत नहीं थे,क्योंकि उनकी शक्तियां ही सोई थी। उनके ज्ञान का लोप नहीं हुआ था।

2.यह दृष्टा और दृश्य का अनुसंधान करने वाली शक्ति ही कार्य कारण रूपा माया है ।इस भावाभाव रुप अनिर्वचनीय माया के द्वारा ही भगवान ने इस विश्व का निर्माण किया है।

3.कालशक्ति से जब यह त्रिगुणमयी माया क्षोभ को प्राप्त हुई, तब उन इंद्रियातीत चिन्मय परमात्मा ने अपने अंश पुरुष रूप से उसमें चिदाभास रूप बीज स्थापित किया।

तब काल की प्रेरणा से उस अव्यक्त माया से महतत्व प्रकट हुआ वह मिथ्या अज्ञान का नाशक होने के कारण विज्ञान स्वरूप और अपने में सूक्ष्म रुप से स्थित प्रपंच की अभिव्यक्ति करने वाला था।27

रोहिणी

रोहिणी 


तीसरे स्कंध की 2nd अध्याय से अध्याय 15 तक=14अध्याय

विदुर उद्धव से जयविजय तक 

ŚB 10.87.17

द‍ृतय इव श्वसन्त्यसुभृतो यदि तेऽनुविधा

महदहमादयोऽण्डमसृजन् यदनुग्रहत: ।

पुरुषविधोऽन्वयोऽत्र चरमोऽन्नमयादिषु य:

सदसत: परं त्वमथ यदेष्ववशेषमृतम् ॥ १७ ॥

भगवन्! प्राणधारियोंके जीवनकी सफलता इसीमें है कि वे आपका भजन-सेवन करें, आपकी आज्ञाका पालन करें; यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनका जीवन व्यर्थ है और उनके शरीरमें श्वासका चलना ठीक वैसा ही है, जैसा लुहारकी धौंकनीमें हवाका आना-जाना। महत्तत्त्व, अहंकार आदिने आपके अनुग्रहसे—आपके उनमें प्रवेश करनेपर ही इस ब्रह्माण्डकी सृष्टि की है। अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय—इन पाँचों कोशोंमें पुरुष-रूपसे रहनेवाले, उनमें ‘मैं-मैं’ की स्फूर्ति करनेवाले भी आप ही हैं! आपके ही अस्तित्वसे उन कोशोंके अस्तित्वका अनुभव होता है और उनके न रहनेपर भी अन्तिम अवधिरूपसे आप विराजमान रहते हैं। इस प्रकार सबमें अन्वित और सबकी अवधि होनेपर भी आप असंग ही हैं। क्योंकि वास्तवमें जो कुछ वृत्तियोंके द्वारा अस्ति अथवा नास्तिके रूपमें अनुभव होता है, उन समस्त कार्य-कारणोंसे आप परे हैं। ‘नेति-नेति’ के द्वारा इन सबका निषेध हो जानेपर भी आप ही शेष रहते हैं, क्योंकि आप उस निषेधके भी साक्षी हैं और वास्तवमें आप ही एकमात्र सत्य हैं(इसलिये आपके भजनके बिना जीवका जीवन व्यर्थ ही है, क्योंकि वह इस महान् सत्यसे वंचित है)* ⁠।⁠।⁠१७⁠।⁠।

Only if they become Your faithful followers are those who breathe actually alive, otherwise their breathing is like that of a bellows. It is by Your mercy alone that the elements, beginning with the mahat-tattva and false ego, created the egg of this universe. Among the manifestations known as anna-maya and so forth, You are the ultimate one, entering within the material coverings along with the living entity and assuming the same forms as those he takes. Distinct from the gross and subtle material manifestations, You are the reality underlying them all.





13.वराह

 वराह अवतार