सोमवार, 30 मई 2022

1.बाल लीलाओं का वर्णन

बाल लीला वर्णन 

 उद्धव जी द्वारा भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन

ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे पृथ्वीका भार उतारकर उसे सुखी करनेके लिये कंसके कारागारमें वसुदेव-देवकीके यहाँ भगवान्‌ने अवतार लिया था ⁠।⁠।⁠२५⁠।⁠। उस समय कंसके डरसे पिता वसुदेवजीने उन्हें नन्दबाबाके व्रजमें पहुँचा दिया था⁠। वहाँ वे बलरामजीके साथ ग्यारह वर्षतक इस प्रकार छिपकर रहे कि उनका प्रभाव व्रजके बाहर किसीपर प्रकट नहीं हुआ ⁠।⁠।⁠२६⁠।⁠। यमुनाके उपवनमें, जिसके हरे-भरे वृक्षोंपर कलरव करते हुए पक्षियोंके झुंड-के-झुंड रहते हैं, भगवान् श्रीकृष्णने बछड़ोंको चराते हुए ग्वालबालोंकी मण्डलीके साथ विहार किया था ⁠।⁠।⁠२७⁠।⁠। वे व्रजवासियोंकी दृष्टि आकृष्ट करनेके लिये अनेकों बाल-लीला उन्हें दिखाते थे⁠। कभी रोने-से लगते, कभी हँसते और कभी सिंहशावकके समान मुग्ध दृष्टिसे देखते ⁠।⁠।⁠२८⁠।⁠। फिर कुछ बड़े होनेपर वे सफेद बैल और रंग-बिरंगी शोभाकी मूर्ति गौओंको चराते हुए अपने साथी गोपोंको बाँसुरी बजा-बजाकर रिझाने लगे ⁠।⁠।⁠२९⁠।⁠। इसी समय जब कंसने उन्हें मारनेके लिये बहुत-से मायावी और मनमाना रूप धारण करनेवाले राक्षस भेजे, तब उनको खेल-ही-खेलमें भगवान्‌ने मार डाला—जैसे बालक खिलौनोंको तोड़-फोड़ डालता है ⁠।⁠।⁠३०⁠।⁠। कालियनागका दमन करके विष मिला हुआजल पीनेसे मरे हुए ग्वालबालों और गौओंको जीवितकर उन्हें कालियदहका निर्दोष जल पीनेकी सुविधा कर दी ⁠।⁠।⁠३१⁠।⁠। भगवान् श्रीकृष्णने बढ़े हुए धनका सद्व्यय करानेकी इच्छासे श्रेष्ठ ब्राह्मणोंके द्वारा नन्दबाबासे गोवर्धनपूजारूप गोयज्ञ करवाया ⁠।⁠।⁠३२⁠।⁠। भद्र! इससे अपना मानजब इन्द्रभंग होनेके कारण ने क्रोधित होकर व्रजका विनाश करनेके लिये मूसलधार जल बरसाना आरम्भ किया, तब भगवान्‌ने करुणावश खेल-ही-खेलमें छत्तेके समान गोवर्धन पर्वतको उठा लिया और अत्यन्त घबराये हुए व्रजवासियोंकी तथा उनके पशुओंकी रक्षा की ⁠।⁠।⁠३३⁠।⁠। सन्ध्याके समय जब सारे वृन्दावनमें शरत्‌के चन्द्रमाकी चाँदनी छिटक जाती, तब श्रीकृष्ण उसका सम्मान करते हुए मधुर गान करते और गोपियोंके मण्डलकी शोभा बढ़ाते हुए उनके साथ रासविहार करते ⁠।⁠।⁠३४⁠।⁠।



3.भगवान के अन्य लीला चरित्रों का वर्णन 


4.उद्धव जी से विदा होकर विद्युत जी का मैत्री ऋषि के पास जाना 


5.विदुर जी का प्रश्न और मैत्री जी का सही क्रम वर्णन 


6.विराट शरीर की उत्पत्ति 


7.विदुर जी के प्रश्न 


8.ब्रह्मा जी की उत्पत्ति 


9.ब्रह्मा जी द्वारा भगवान की स्तुति 


10.10 प्रकार की सृष्टि का वर्णन 


11.मनवंतर आदि काल विभाग का वर्णन 


12.सृष्टि का विस्तार 


13.वाराह अवतार की कथा 


14.दितिका गर्भधारण 


15.जय विजय को सनका

The fish took the moon to be one of them or maybe something illuminating, but nothing more. The unfortunate persons who do not recognize Lord Kṛṣṇa are like such fish. They take Him to be one of them, although a little extraordinary in opulence, strength, etc.

The Bhagavad-gītā (9.11) confirms such foolish persons to be most unfortunate: avajānanti māṁ mūḍhā mānuṣīṁ tanum āśritam.









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13.वराह

 वराह अवतार