शनिवार, 25 जून 2022

9ब्रह्म स्तुति

  1.  भगवन्! आपके सिवा और कोई वस्तु नहीं है⁠।
  2. चित् शक्तिके प्रकाशित रहनेके कारण अज्ञान आपसे सदा ही दूर रहता है⁠। आपका यह रूप, जिसके नाभिकमलसे मैं प्रकट हुआ हूँ, सैकड़ों अवतारोंका मूल कारण है⁠।
  3. परमात्मन्! आपका जो आनन्दमात्र, भेदरहित, अखण्ड तेजोमय स्वरूप है, उसे मैं इससे भिन्न नहीं समझता⁠।
  4. विश्वकल्याणमय! मैं आपका उपासक हूँ, आपने मेरे हितके लिये ही मुझे ध्यानमें अपना यह रूप दिखलाया है⁠।
  5. भक्तजनोंके हृदय-कमलसे आप कभी दूर नहीं होते;
  6. अभय प्रद चरणारविंदों का आश्रय 
  7. अमंगलोंको नष्ट करनेवाले
  8. कष्ट उठाते देखकर मेरा मन बड़ा खिन्न होता है
  9. मायाके प्रभावसे आपसे अपनेको भिन्न देखता है,तबतक उसके लिये इस संसारचक्रकी निवृत्ति नहीं होती⁠।
  10. आपके कथाप्रसंगसे विमुख रहते हैं तो उन्हें संसारमें फँसना पड़ता है⁠।
  11. आपका मार्ग केवल गुण श्रवण से ही जाना जाता है।
  12. आप एक हैं तथा संपूर्ण प्राणियों के अंतःकरणों में स्थित व उनके परम हितकारी अंतरात्मा है।सर्व भूत दया
  13. आपकी प्रसन्नता प्राप्त करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा कर्म फल है।
  14. स्वरूप के प्रकाश 
  15. आप नित्य अजन्मा है मैं आपकी शरण लेता हूं।
  16. इस विष वृक्ष के रूप में आप ही विराजमान हैं
  17. बलवान कल भी आपका ही रूप है
  18. आप ही अधिक ग्रुप से मेरी इस तपस्या के साक्षी हैं
  19. आप पूर्ण काम है
  20. आप अविद्या अस्मिता राग द्वेष और अभिनिवेश पांचों में से किसी के भी अधीन नहीं है




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