- भगवन्! आपके सिवा और कोई वस्तु नहीं है।
- चित् शक्तिके प्रकाशित रहनेके कारण अज्ञान आपसे सदा ही दूर रहता है। आपका यह रूप, जिसके नाभिकमलसे मैं प्रकट हुआ हूँ, सैकड़ों अवतारोंका मूल कारण है।
- परमात्मन्! आपका जो आनन्दमात्र, भेदरहित, अखण्ड तेजोमय स्वरूप है, उसे मैं इससे भिन्न नहीं समझता।
- विश्वकल्याणमय! मैं आपका उपासक हूँ, आपने मेरे हितके लिये ही मुझे ध्यानमें अपना यह रूप दिखलाया है।
- भक्तजनोंके हृदय-कमलसे आप कभी दूर नहीं होते;
- अभय प्रद चरणारविंदों का आश्रय
- अमंगलोंको नष्ट करनेवाले
- कष्ट उठाते देखकर मेरा मन बड़ा खिन्न होता है
- मायाके प्रभावसे आपसे अपनेको भिन्न देखता है,तबतक उसके लिये इस संसारचक्रकी निवृत्ति नहीं होती।
- आपके कथाप्रसंगसे विमुख रहते हैं तो उन्हें संसारमें फँसना पड़ता है।
- आपका मार्ग केवल गुण श्रवण से ही जाना जाता है।
- आप एक हैं तथा संपूर्ण प्राणियों के अंतःकरणों में स्थित व उनके परम हितकारी अंतरात्मा है।सर्व भूत दया
- आपकी प्रसन्नता प्राप्त करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा कर्म फल है।
- स्वरूप के प्रकाश
- आप नित्य अजन्मा है मैं आपकी शरण लेता हूं।
- इस विष वृक्ष के रूप में आप ही विराजमान हैं
- बलवान कल भी आपका ही रूप है
- आप ही अधिक ग्रुप से मेरी इस तपस्या के साक्षी हैं
- आप पूर्ण काम है
- आप अविद्या अस्मिता राग द्वेष और अभिनिवेश पांचों में से किसी के भी अधीन नहीं है
शनिवार, 25 जून 2022
9ब्रह्म स्तुति
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
13.वराह
वराह अवतार
-
श्रीमैत्रेयजीने कहा—जो आत्मा सबका स्वामी और सर्वथा मुक्तस्वरूप है, वही दीनता और बन्धनको प्राप्त हो—यह बात युक्तिविरुद्ध अवश्य है; किन्तु वस...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें